Saturday, 30 June 2018

दो पल

दो पल जी लो जरा सांसे कंवारी है
घट रही जिंदगी उम्र के भी अपने तमाशे है।

फैल रही आंस घुटने में चुभने लगी मजबूरी
अंतिम पड़ाव का संकेत और ये दूरी।

लाश एक जिन्दा भी लाश है एक मुर्दा भी
कड़वा सफर है माफ़ और साफ है दरिया भी।

नंगा हो गया जमाना किसी की फ़िक्र नही
हस्तियां बिक गई अपनी , उनका जिक्र नही।

आओ एक ताना बाना भविष्य का बना ले
अभी से ही राह मुश्किल समय की निकाले।

गोल गली जिस तरह नही होती
नींदे सच में कहो तो नही सोती।

एक आसान था बचपन सहज थी जवानी
अब वो पता नही कौन ले गया याचकदानी।

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