Saturday 15 February 2020

वैश्विक राजनीत में भारत की वर्तमान स्थिति

राजनीति का उसूल है , कुशल नेतृत्व से व्यवस्था परिवर्तन . यह एक चातुर्य गुण की अभिव्यक्ति है, राजनीती सम्बंध से व्यवस्था को जोड़ती है . भारत के सम्बंध में यदि वैश्विक राजनीत की बात करें तो भारत सदैव विश्व में अपनी अलग विशिष्ट पहचान रखता है . उसने सदैव वैश्विक राजनीत में तटस्थता की भावना का निर्वहन किया है . परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नही रहा की उसने अपने पाले में अन्य राष्ट्रों को नही किया . अपितु भारत ने सदैव तटस्थ रहने के बावजूद भी बन्धुत्व एवँ मानवता के बुते अनेकों राष्ट्रों को अपने पक्ष में करते हुए भारत ने अपनी राजनैतिक चतुरता का परिचय दिया है. इसमें चाहे अमेरिका एवँ रूस के बीच छाये काले बदल रहे हो, चाहे चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्र से रिश्ते हो हर समय भारत ने सकल वैश्विक राजनीती में अपने आपको एकल गुट निरपेक्षता का नेतृत्व किया है.

परन्तु बीते कुछ बरस में जहां विश्व के छोटे से छोटे राष्ट्र अपनी राजनैतिक पहुँच विश्व में बढ़ा रहे है . अनेकों राष्ट्रों से सम्बंध स्थापित कर आर्थिक एवँ सामाजिकता को मजबूत करने के कार्य कर रहे है . एवँ निर्भीकता के साथ गोलबन्दी करने में सफल होते जा रहे है. उन्हें समझ है , की विश्व की तेजी से बदलती राजनीती में उनका पीछे रहना कहीं न कहीं उनके लक्ष्य से चूकना होगा. अतएव वे अपनी सजगता दूरदर्शिता से अनेकों विवादों को सुलझाते हुए आगे बढ़ रहे है.

भारत का इतिहास रहा है , वह सदैव अनेकों राष्ट्रों को अपने पक्ष में करता रहा है , 1949 से लेकर 2014 तक भारतीय वैश्विक राजनीती एक चतुर कूटनीति के आधार पर चलती रही.

किंतु 2014 के बाद से भारत अनेकों विदेशी राजनैतिक मुद्दों पर अन्य राष्ट्रों के मुकाबले पीछे सा हो गया है. छोटे से छोटे राष्ट्र भी भारत को राजनैतिक रूप से आँखे दिखाते पाये गए है . चाहे भूटान हो, मालदीव हो अनेकों द्वीपीय राष्ट्रों ने हमे धता दिखाया है. यह हमारी विदेशी राजनीती की असफलता भर ही है की जहां हम इन राष्ट्रों को आर्थिक मदद से लेकर हर वह सहायता करते आये है जब इन्हें जरूरत हमसे रही हो. किंतु आज ऐसा नही है . हाल ही में तुर्की प्रधानमन्त्री की पाक यात्रा पर उन्होने अपने भारत विरोधी रवैया दिखलाया है. एवँ कश्मीर को तुर्की के लिए भी महत्वपूर्ण बतला डाला.

1 . क्या यह हमारी वैदेशिक राजनीती की असफलता नही है?

2 . परम्परागत रूप से भारत के सहयोगी रहने वाले राष्ट्र आज भारत से दूर क्यों होते जा रहे है?

अनेकों ऐसे प्रश्न उठते है . किंतु आज हमे जरूरत है देश के भीतर की राजनीती को छोड़ वैदेशिक राजनीत पर ध्यान दिया जाए एवँ भारत की पूर्ववत राजनीती ( बन्धुत्व , गुट निरपेक्ष ) को जारी रखते हुए राष्ट्रों को अपने पाले में किया जाना चाहिए . यह भविष्य की भारत की राजनीती के लिए परम् आवश्यक है . वरना इसके दुर्गामी परिणाम होंगे.

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

  नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...