Wednesday 28 February 2018

प्रणय पर्व होली

सतरंगी थालियां सजी
सूखे कजरे मनमोहक रंगो से
ला मचा दे हंगामा गलियों में
सुबह - दोपहर उमंगो से

धूसर - कपड़े फाड़ पर्व मनाये
आम्र पत्ते मसलकर सुगन्ध फैलाएं

अनिल में घोलें घपले मनमोजक
संस्क्रति के राग - दीये प्रज्वलित
सुधा के प्याले परोस लें
फ़िजा में मीत करें आओ टँकीट।

होली हे रे होली

इलाज है

दर्द को दर्द का इलाज है
साथ हो तो मेरा ताज, वरना मिजाज है

खुल जाये तो मजेदार राज है
दिल के ग़मो को आये लाज है

अकेले नजर से देखकर मिलेगा क्या
अरे छोड़ तू तो मद्धम मद्धम ख़ुशी का नाज है

महकमे में हलचल और सफर की मंजिल
अदाओं से मचा दे हंगामा वो तेरा अंदाज है

हल्के में गुजारिश के मेले बसा दे मौजूदगी से
रहमत का कुल मिलाकर बेहिसाब है।

नीलामय

करतली के ऊपर आकर
मेघ ने संदली सजाई है
बहारें साज करके
मृग रूप लेकर आई है

माघ के मौसम की आवाज
से ऋति नीरव में लीन
खड़े फाल्गुन की आस में
दुर्दिन हुए अब तल्लीन

चिड़िया , पिक मिलकर
साधू वादन का राग लगाए है
फूलवती के पंखो में
नव नव सांसे उभर आये है

कनेर के पौधे वसुधा के
शुक्रगुजार में खिल उठे
पावस के अतिरेक में
समर करनेे धीट छूटे

हरियाली के बावन सुख में
क्या कवि का मन अवगाह
रे तमन भेजने वाले ईश्वर
जग के निसर्ग की मुझे चिंता।

Tuesday 27 February 2018

Child

If we are busy
Kids tell u r crazy

Plz do entertainment for ours
And then no , big raise roars

My mind can not work properly son
U just making we nandan?

Monday 26 February 2018

निसर्ग की व्यथा

मधुमास में फूलों के यौवन
में वारें क्यों पड़ी है?
कहीं दिनकर के प्रकोप दृष्टि
इन मासूमो पर तो नही गढ़ी है?

कलावती के कूल सूखे सूजे
अनिर्मित से प्रतीत होते है
पतझड़ के अवगाह से
यह प्यारे प्यारे फूल क्यों रोते है?

कामायनी सी सुरभि हताश
होकर! झिलमिलाता दीया बनी क्यों?
तिमिर की नोक ने घायल कर दिया
अगर नही तो ये सनसनी क्यों?

शिंजन नदारद मक्का से
सूक्ष्म सूक्ष्म कीटों की
कलियाँ व्रतों से क्षीर की भाँति बहती
उन्हें जरूरत छींटों की

उपल निर्झरों से दो बूंदों
का प्यास से आग्रह करते है
किन्तु अलि के प्रकोपों से
भय भी खूब करते है।

Sunday 25 February 2018

गगन के रंध्र में

प्रकाश पुंज उद्घोष लगाकर
अलि बनाये जग में फैल गया
रागिनी के मधुर भान के सीने
चढ़कर मै आया अब बोल गया

पहले पहल सरित निर्झरों
की लहरों में जा चमकूँगा
फिर जलधि की सैकत पर
पैर पसारकर मचलूँगा

दूर्वा , तुंग शृंग मोतिहार
की गोद में रविता बनकर बैठा हूँ
विहान के पंजो में
शक्ति का उद्वेता हूँ

उपलों के भेष में खड़ा हुआ
किनारा जलडूबी पत्थर
कलयुगी मैसूर के मैदानों में
अब मेरा न लेगा कोई अवलम्बन खच्चर

निराशा के बोध में ह्रदय सुकुमार
न डुबकी अब लगाएगा
निज पग पग में संघर्ष के वादन
विर्द लघु मन मेरा समाज लगाएगा।

Saturday 24 February 2018

" गगन "

अंको में बंट गया गगन
मिथिला के पंजो में
हिमाद्रि और गंगा में
बच्चों की रंग बिरंगी मांझो में फंस गया गगन

अंको में बंट गया गगन

जलधि में उतरता है
शिशिरकाल में चढ़ता है
मंद मंद कदम बढ़ाते
विशिष्ट अतिथि बन गया गगन

अंको में बंट गया गगन

चिरी खिल उठती है
तेरे छा जाने से
कनेर मिलते है आपस में मधु
पावस की बूंदों के बरस जाने से
चढ़ते जवानी की सीढ़ी
गुलाब कुंद खड़े बड़े तुंग से चमन

अंको में बंट गया गगन

चंद्रमा केश फैलाकर
तुझसे मालिश को कहता है
देख रवि भी समीप तेरे ही रहता है
दीर्घग्मन तू लघु रण तू
धरती की निर्जनी में तू साथी रमन

अंको में बंट गया गगन

आओ मशाल जलाएं

चलों भीगे कुछ आंसुओ से
मन के दीप जलाएं
आओ शकरकन्द से ही
अपने राष्ट्र रंको की भूख मिटाये

मंदिर मय हुए आकाशतल
धरती के पल्लू भीगे है
आओ इन्ही में से खोजकर
अहाते कुछ निकाले सूखे है

पोर पोर में जख्म अंतर तक
शूल चुभे बेसलीके है
ढिलमिल नीरव विद्रुम विद्रूप
निर्जन घरों के सींकचे है

फूहड़ मन की अनामत मांग ली
जिन जिन विहड़ मन वालों ने
आओ किन्तु दूर्वा हरित बिछाकर
स्वागत मानवमात्र को करें चमकदार उजालों में।

Friday 23 February 2018

सांसो की चीख

जीवन के सुकुमार पुष्प न जाने क्यों
गम्भीर सांसे लेते है?
धीट असफलता के कारण
कालों के संग घिरे रहते है

शुभ्र् वसन की भाँति चन्द्रमा
ने जो दिव्य पाहन पहने थे
सागरों में रोशनी फेंकते
जिनके पूरब में अवगाहन थे

पुरवैया घूम घूमकर गलियों
के चक्कर जब खूब लगाती थी
मै मेरा ह्रदय सैयां की पाँति
सी बन जाती थी

किरणे जगमग धूसर के
अलि में लिपट जाया करती थी
सिंचन धरा के स्थलों को
रागिनी की लपटों में मिलकर रह जाती थी

अब वह बात न रही क्योकि
मेरे उपवन सूख रहे है
रवि कलेजे के अहातों में
किरणों के बंद सन्दूक रहे है।

inocent star

Alone live alone brightly
illuminated the universe is flasing house say rightly

as beauty in heaven is not like that 
hundreds and thousands of these result of the year over day and night 

the fish nights bounces its night
is hidden in the waves life syrup in it

Wednesday 21 February 2018

जीवन दैत्य !

मैने जीवन नही माँगा था
क्योकि हिनों की लूटती अस्मत
देखकर ह्रदय चिंतित है
किसानो के नयनजल में
भयावह अकाल दिख रहा
आगामी भविष्य भयभीत है

विमल नगरियाँ मधुरस को
तरस गई ,अवगाहन की हुई आँखे
भूल गए छल पुरानें
भूली नजरें चेतन रोती रोती तन भीगे

इस शशोपंज में ह्रदय
अटक गया मनुजों का
नाश होगा दानव और
अवेध अभेद अक्रेत धनुषों का

माँ कल्याणी विरह वेदना में
मै अपने मासूमों के शवों पर नित्य निज तड़पता हूँ
अभी भेदा हुआ मटका
बर्तन सा झरपता हूँ

तरस गए भूखे एक विलास को
नींद नही , नही सुख है
पलास के कोमल पत्तों में
छिन गई आजादी अनिल
ने कराह लगा दी छत्तो में

ऊहापोह है रन्धित तन
कबतक मिथिला सा बना रहेगा
कील सी चुभम के समक्ष
कबतक तड़पता खड़ा रहेगा?

अवलम्बन मांग मांग
मृदा की भाँति दरक गया हूँ
फुट गई मानो आँखे
काल की भेंट पर लटक गया हूँ

जिव्हा के रूदन में नीरव
ठहर नही पा रही
स्वंग टूट चुके रगें चालबाजी
करती सांसो में अलगाव रही

तपोवन को निकल जाने
की तीव्र आकांक्षा घर करती है
मर्दित वातावरण में
अंतिम अंतिम हूँ ,कहती आहें भरती है

ऐ दिव्य शक्तियों के
पर्णकुटी की वाटिकाओं में रहने वाले
अलख अवलम्बन की मेरे प्यारे
निर्झरों के उपलों में लगा दे
मत्स्यों के कंठ को शीतलता
की नवी नवी वेणु विंदु गाकर दिखा दे

न कोई चरणमृत होगा यहाँ
न किसी जननी का दुग्ध लूटेगा
महादानव के तोरण से
पुनः कोई तीर छुटेगा

आज माँगता हूँ उन मर्दित किसलयों
के दान की अंतिम भिक्षा
झड़ गए दाने जिन निवारों के
कर दे कर दे उनकी अभिरक्षा

हाय यह द्रुत बड़ी कानों में
गूंज मचाकर चिढ़ाती है
बाल मेघों की भूख तड़प बिन भोजन के
रातें मेरे वतन की कट जाती है

अंजुल खुलकर बन्द हो गई
तीर ह्रदय , शरीर के पार हो गया
फना अस्तित्व , यात्रा विजन की
निर्थक म्रत्यु की कतार हो गया

बनवारी

कुलिश तड़ककर नमनंतर

विस्थापन किये सागर

वेणु वादन मधुरस बरसा दे

भरे सौ सौ अमृत घाघर।

~शहादत

#जयश्रीकृष्ण_साथियों

Tuesday 20 February 2018

गंतव्य

शीश उठा प्रतापी
संघर्ष इर्द गिर्द डोल रहा है
सफलता की पाँति लिए गगन
आगे बढ़ , बोल रहा है

ईष्र्या की नीतियों को
धता दिखा, लड़कपन से उठ
मलय के शिखरों के समान
कोहिनूर की ज्योतियों की भाँति बन अटूट

ईश्वर का आशीष ललाट
को तेरे भींचता है
अग्निबाण की प्रत्यंची से
प्रतिस्पर्धा उलीचता है

इस अन्वेषण काल में
भीतर ज्वाला लगा दे
रवि के भारी कणों में
हाहाकार मचा दे।

श्रीकृष्ण

दनुज नाग के मस्तक पटल

पर ,बनवारी के पदचर टँकीट है

विष के पावस बरसाती जिव्हा

रक्त में रंजित है।

~शहादत

#जय_श्रीकृष्ण

Monday 19 February 2018

उपल

खुल गई बूंदे , खिल गए निर्झर
धरा की गोद में
हरी हरी दूर्वा को छु गई
जैसे दुकूल सी रेत में

ललित विधाएँ गाती
मधुरस लिए सम्मुख
किसलय वृंते ताजगी पाती
प्यारे प्यारे लिए रूप

अलि फैेल गए चारों दिशा
नंदन वन में सुकुमारों पर
स्वेदकण जिस तरह सतीश
के तन से मलयानिल के शिखर तर

झूमकर नृत्य मुद्रा में
सरित लहरें मार रही
मोती समान पुलिन पत्थरों
के गुण गान रही

क्रौंच गीत गाते तमसा
के किनारो से
स्वन निकल आये
खुशहाली के पठारों से।

निगाह

Sunday 18 February 2018

अंतरतम

भीग चुकी नजरें ,बीत चुके
अल्हड़ मस्ताने
लाल किले के चौक से
दबी घृणा रहा करती थी
जिनके समीप वह भी थे भयभीत
उनकी प्रतिबद्धता के रौब से

वेणु कुंज में बैठकर जो
मानवता की दिशा तय करते थे
भूख भूख सत्यानाशी के तीव्र हमलों
से भी न लक्ष्य से वे डरते थे

दीप शिखा की बुझ जाये
वह ईश्वर की पूण्य रौशनी
की राह में रत हो जाते
ऐसे महापुरुष राष्ट्र के
अंधकार में भी जगमग जाते

रार न ठानकर आगे बढ़े
सदैव सत्य का पताका लेकर
आज समय दे रहा ताने उन्हें
शत्रु राष्ट्र का कहकर

मैने हे ईश्वर जीवन न माँगा था
हथियारों की यलगारों में
पाप फुट रहे मानो पेड़ों
की छालों और क्षारों में

मर गया अतीत ,अमिट ,अमित
मर गई मिट्टी की संस्मरणिता
रंग भेद घृणा की गतिशीलता
अग्निदग्धा नारी अग्नि में जलती अरमानों की चिता

भीड़ जा रे कवि
आज के विभेदों से
मैदान में डटकर रह या
विदाई ले ले प्यारे प्यारे खेतों से।

पुंज

पनघट के छल्ले में कोई
उजला पुंज सतह पर पसरेगा
निज जयंत के उदघोष लगाकर
राकेश रश्मि से झगड़ेगा

अपरान्ह के प्रारम्भ तक
संझा की फेरी के द्वार
उषा की नग्न बहारें
ताजगी के प्रशाल तार तार

अनल के क्रियाकलाप शीतल
लौ फ़िजा में लगाएंगे
मज्जा के ऊपरी , निजले भाग
शांत वातावरण पाएंगे

विशाल समूह में रंग , एक साथ
होलिका की ढेरी सजेगी
रत घरिणीयां साड़ी पल्लू
लेकर चौराहों के ओर बढ़ेगी।

Saturday 17 February 2018

मिश्रित व्यथाएं

शूल मग में शर उभारे
रक्तपात को बिखरे है
पंजो को साध निशाना
दंत खूखार निखरे है

सूखे निर्जल टूटी शाखों
वाले पेड़ शीश नवाये
विजन दर्शाती सड़के
टूटे फूटे खण्डहर में
कवि ढूंढ रहा अवलम्बन नये

नवीन फूटे सी कोमल
मधुर बरसाते लघु लघु खेत
न जाने नजर लगी किसकी
फसले बर्बाद , खुल गया सियासत का भेद

अन्न मिलेगा तो परिश्रम
निर्धन का सम्भव होगा न
आधार परिचय न मिले
तो मालूम न था प्रशासन बाहर फेकेगा

भरी जवानी की अटकले
सीने को भीतर करती है
रगें फूलकर पुनः अकृत शरीर में
सांसे भरती है

शिशिर बीत गया किन्तु
यह बेजारी कब बीतेगी?
टूट चुकी कमर न्याय की
कब मानवता जीतेगी?

Friday 16 February 2018

" मीत की लगन है "

नयन को चिंता उठी
ह्रदय पुंज खुल गए
किसलय के उरों पर
उषा के सवेरे सिल गए

नीलगायें चर लगाती मेढ़ों पर
हरी दूब फेल गई
तुषार की बूंदे दमकती
वाष्पित होना भूल गई

अल्हड़ शाम की शेष निधि
गर्मी के मौसम में बाकि है
हरे हरे पेड़ों की शाखें
अंगड़ाई लेकर दिखलाती झांकी है

क्षीर पलाश के पत्तों में
व्रतों से इस तरह बहने लगी
बाल मेरे यहां दूध पीते
दुग्ध की नहरें अधर पर रहने लगी

पुरवैया बालक दिनकर को
अंजुल दिखाकर खेतों में जा पहुँची
निशि तेज आगे बढ़कर
डूबकी लगाकर शहर पहुँची साँची

#सुप्रभात् #जयश्रीकृष्ण

" नैराश्य "

स्व जिव्हा से द्रुत
आह की निकल आई
कथन ! थर्राती सांसे
आँखों तक आकर भर आई

प्रयास पूर्ण किये समय पर
हथेली में वारें प्रतीत होती
सूखी दृष्टि की चीख
मंद होकर आशाएं छोटी

तिरहुत के तालाबों में
जो विजन पढ़ा था मैने
अपने जीवन की रातों को
खाली खड़े भंडारों में मकड़ जाल पाया मैने

इलाहाबाद के कुंड
वो टूटी मूर्तियां
एक शतक की मर्दित, बड़े बड़े प्रशाल
शैल पड़े फूटे , चढ़ी चीटियाँ

देश के भविष्य,युवाओ को
पथ बनाकर कैसे मै दे जाऊं
गली मुहल्लों में मुक्त फिरते
नवज्वाला के सुख सागर में कैसे नहलाऊँ?

अखबार के पटल पर
लूट गया घर का घर
जड़ चेतन मेरी हिल गई
हिल गई पलके चीर

आकाश के नीलेपन में
जब हर्ष उल्लास देखा था
ये वही धरा है रक्त जिसने
अपने लालों का फेका था

भरी पड़ी इस दुनिया को
रे कवि क्या गान मै ऐसा गाऊँ
निर्दोष निशि में ठानकर
भोर तक हाय लूट गया चिल्लाऊँ

अपनों के मेले में रिक्त हुई
आशाएं !
छल कपट के युग में
मल्लित तन , गन्दी मानसिकताएं

शस्य

'' शस्य ''


हाय भार मेरे सर
न लगना था लग गया
जवानी की उम्र में
आज न थकना था , थक गया


भार इतना भी दुर्वह
न हो जिससे हड्डियां
शरीर की टूट जाए
भाति बस्ती दनुजो से
मेरी लूट जाए





  

Thursday 15 February 2018

" पीड़ा "

जनमानस के प्रांगण में
भविष्य उजाड़ रहा है
हथ की भाँति पैरों से
मर्दित करके मजबूत
प्रत्यंचा सा तान रहा है

भय ने भीतर अग्रिम म्रत्यु
की अफवाह फैलाई
अंदेशा इतना भयावह
अनिल की आहट भी लगी गुस्साई

हिसाब बराबर अपने
कर्मो का निकट रख लेना
डोर सांसों की टूटेगी
आज तपोवन में नेकी जप लेना

मनुज के निरादर से
चेतन की करना दूरी
निर्थक की आँचल में वरन्
लगा जायेगी दगा की फेरी

मनुज एक खिलौना है
आदिकाल से ऋषि कह गए
घृणा की सेज से हट जा
द्वार किलों के ढह गए

उन्माद से भला न होगा
जीवन प्रमाद की गढ़ जायेगा इतिहास
छोड़ हथकण्डे लालच के
छिन जायेगी संगत से विभव की प्रभास

Tuesday 13 February 2018

" सुमन "

हरी दूर्वा समझ गई
कुसुम उठ खडे होंगे
मंदी हर सू होगी
किन्तु मौसम ऋतुपति में
पुष्प नृप अंगड़ाई लेंगे।

लहराएंगे खिलखिलायेंगे
बाहें फैलाकर दृग मिचकर
क्रीड़ा !प्रेम की लाली से
सिकता में भी स्म्रति सींचकर

आज पुलिन खिलते
मन्द गीत गाएंगे
रंच रंक मरू में भी
रस के छत्ते फुट जायेंगे

पावस की बूंदे बिखरी हुई
किसलयी शाखों पर नाच रचाएंगी
विशिष्ट कलाबाजी अपनी
सृष्टि को दिखलाएगी।

#HappyValentineDay

Monday 12 February 2018

दिठौना मंगल है

शुभ्र वसन की दस्तक में
धवलश्री सुने मैने
कपाल की दाई ओर
शीश झुके मृदुल नेने

           दानव बुद्धि बुझाकर
           काले नीम काटते है
           प्रभु मग में चलते जाते
           दनुज शूल पाटते है

सीप शंख में जलधि
सिमटकर रह गया
अंजुल दानों की माफिक लल्ला के
बीच उमंग के तेरे थे
मीत लगाकर कह गया

           शिव थाति , अमित
           प्रेम का प्याला
           नश्वर प्रेम के भाव में
           डूब गया निराला

भले भजन में डीग हांकता
मनुहारी मन मेरा
सांवरे खिले अधर लेकर आया
तन ठन नर्तन आँगन उजेरा।

" जगमग आनन "

देख पताका फेरा है
संगमरमर की थाली में
राकेसी रूप समान
छुपा आनन जाली में

भीतर के उजियारे
पुंज भेदकर बाहर निकल आये
मुकुल सतह पर
देखो ये शीतल छाए

अंधियारे में देखो
शिखा क्या खूब नृत्य करती है
मग में ठहरे रही से
क्या वह डरती है?

अर्ध मज्जा में ललन मन
रहता है
गहन रागिनी में कलकल
स्वन करके बहता है।

Sunday 11 February 2018

परिणीति

'' परिणीति  ''

 डोर बंधी  ह्रदय  से होकर 
आत्मा तक  पकड़ की 
असहाय जीवन  को  बल  देकर 
गाथा एक भव्य जड़ दी 

                                        एक सुहाना  , भीना  आभास 
                                        यह मौसम स्वस्थ पहचाना 
                                        दर्शन अर्ध खिन्न क्षण पर सकल भारी 
                                        नर्त्तन अमा ने चढ़ाया इसपर  बाना 

विविध सांसो में  खलबली 
आकार निराकार  का प्रत्यक्षी 
संस्कार के पार नीलकंण का टुकड़ा 
कनक वेद का दुलारा सुंदर तक्षि 

                                       
                                       आंगन  में फूलवारी पर तुषार 
                                       लाल कुसुम की लालिमा 
                                       गोद में  मासूम महिमा का सब 
                                       दुर्लभ विहंगम असीम दूर फैली शुभ सी अमा। 

Friday 9 February 2018

ठिठक

" ठिठक "

झिडकती वात में धुल
आँगन को उड़ाती है
फ़िजा की सल्तनत को
चुनौती का रूप दिखलाती है

                          आलस्य रेन में भीगे तन का
                          स्वांग स्वांग ठिठुरता है
                          सर्द मस्तक को लग जाये
                          इसका भय करता है

केश गगन की ओर बढ़ते है
अंजुल जोर से रगड़
भित्तियों की आड़ में
लहू की चहलपहल पकड़

                         आज बदल गए मौसम
                         जलवायु की थकान से
                         प्रकृति के अंगीकरण में
                         भू भाग की रौनक मिटी
                         आलस्य को परहेज जतन से

किसलय की वृंत सूखी नही
धुप के अभिषेक से
ये तड़पती मनुजों के
परस्पर अतिरेक से

                        पर्वत खड़े जिसके संघर्ष
                        ने उन्हें खड़े रहने का बल दिया
                        भाग्यशाली भुवन जिसे
                        जगमग कल खिलखिलाता आज दिया।
'वृद्ध जीवन '

अंजुल फैलाकर  मेंनें याचना 
मांग लिया 
भयभीत  हुए मन , आत्मा ने 
अंत  होना  ठान  लिया 

                             विजय दिवस तब मनाऊंगा 
                            जब  राष्ट्र का एक  एक  बच्चा प्रफुल्लित  होगा 
                           मेरे विचार में  , मेरी  निद्रा  भुखी  होगी 
                          किन्तु  राष्ट्र पुरूष  का जनमानस 
                          मानवता  की  भावनाओ से द्रवित होगा। 

जलाशय जब सूखे थे 
मन  मेरा तब विचलित था 
उषा के भूखे रूप देखकर 
मरू ह्रदय  में , पिघला मीत  था। 


                            रम्भा  उर्वशी मिलकर रूदन  में 
                            समय व्यतीत  करते है 
                            सिसकियाँ निर्धनों की सुनकर 
                          निशि राकेश से लड़ते है। 

परिणाम  द्व्न्द  गीत के  क्या
गाऊ ,  चीखे  निर्दोषों  की  सुनता  हूँ 
ऐ मीत  आत्मा  के भारत 
पग पग स्वयं  को  अंतिम  गिनता  हूँ। 
आत्मीय शांति का अभाव 

मै सामान्य बातों की चर्चा न करते हुए आज की हमारे दैनिक जीवन में घटती घटनाओ का जिक्र करूंगा। 
 
आज हम बेहतर जीवन स्तर जी रहे है। इसका मतलब यह नहीं की हम भाग्यशाली है। 

जीवन स्तर अच्छा हो यह भी बुरी बात नहीं लेकिन बेहतर जीवन स्तर होना भाग्यशाली होना  नहीं है।

मै  इस बात को अभी यही छोड़ देता हूँ। मै आपका ध्यान थोडा दूसरी ओर ले जाना चाहूंगा। 

अभी यूपी में आधार कार्ड नहीं होने पर एक बुजुर्ग की मौत हो गई। इसके इतर ३९ बरस 
के एक व्यक्ति के पास राशन  नहीं था वह भी भूख के चलते मर गया। उसके कुल घर की कीमत  २००० हजार रू थी। माँ वृद्धा थी। मै यह सवाल पूछना चाहता हूँ। बुलेट ट्रेन की घोषणा ने ह्रदय को ख़ुशी तो दी। किन्तु बिन आधार के मेरे राष्ट्र के लोगों की मौतें भी तो चिंतित करती है। तकनीक के इस दौर में जीवन स्तर में सुधार तो आया लेकिन लोगो की अनिश्चित मौतें ह्रदय को चिंतित करती है। सुनियोजित हत्याओं ने पुनः सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या हम हमारे देश के लोगों को स्वतंत्र जीने का अधिकार भी नही  दे सकते ?  जहां हम एक कुत्ते के लिए लाखों खर्च करते है। वहां क्या  हम अपनी बिरादरी [हम वतन] को जीने मात्र तक का राशन नही दे सकते ? सोचिये और निर्णय कीजिये नफरत कभी इंसान का फायदा नहीं कर सकती। 

Tuesday 6 February 2018

नारी 

नारी नाज है 
सर्वसमाज का अभिमान 
हर कूचे इलाके का नूर
सृष्टि की रचियता 
भगवान को जन्म देने का विज्ञानं

धरती की दूरी, हर दूरी का ज्ञान 
नजरे जहां तक मिलाए 
मुक्त की विभूति का आभास 
हे जीवंदायिनी मुफ्त मेंजीवन जीना सिखाये 
क्योकिं , नारी नाज है। 

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

  नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...