Tuesday 20 February 2018

गंतव्य

शीश उठा प्रतापी
संघर्ष इर्द गिर्द डोल रहा है
सफलता की पाँति लिए गगन
आगे बढ़ , बोल रहा है

ईष्र्या की नीतियों को
धता दिखा, लड़कपन से उठ
मलय के शिखरों के समान
कोहिनूर की ज्योतियों की भाँति बन अटूट

ईश्वर का आशीष ललाट
को तेरे भींचता है
अग्निबाण की प्रत्यंची से
प्रतिस्पर्धा उलीचता है

इस अन्वेषण काल में
भीतर ज्वाला लगा दे
रवि के भारी कणों में
हाहाकार मचा दे।

1 comment:

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

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