Saturday 30 June 2018

दो पल

दो पल जी लो जरा सांसे कंवारी है
घट रही जिंदगी उम्र के भी अपने तमाशे है।

फैल रही आंस घुटने में चुभने लगी मजबूरी
अंतिम पड़ाव का संकेत और ये दूरी।

लाश एक जिन्दा भी लाश है एक मुर्दा भी
कड़वा सफर है माफ़ और साफ है दरिया भी।

नंगा हो गया जमाना किसी की फ़िक्र नही
हस्तियां बिक गई अपनी , उनका जिक्र नही।

आओ एक ताना बाना भविष्य का बना ले
अभी से ही राह मुश्किल समय की निकाले।

गोल गली जिस तरह नही होती
नींदे सच में कहो तो नही सोती।

एक आसान था बचपन सहज थी जवानी
अब वो पता नही कौन ले गया याचकदानी।

खुल गए राज

वो नजरें इनायत के राज खुल गए
मुहब्बत की जालियों में
खुद सामने आकर लिपटे बाँहों में
हमने लाजवंती के गीत गाए गलियों में।

सुबह सवेरे यार खुद
ही आकर मचल गया
लू लगे बदन को रूह से
अपनी प्यारी मसल गया।

ताउम्र एहसान से उसके
रहेंगे सराबोर हम
गजल किनारे नदियां के
लिखते गाते रहेंगे उसके हम।

आग और दरिया में फासला
सिर्फ कुदरत का है अजीजों
वरना मुहब्बत और नफरत
का रिश्ता एक हो तो खरीद लो।

मुसलसल रहा जाहिर रोज
मगर , मुहब्बत के ताने बाने से
खुदगर्ज दिलबर ने बिताए पल
खबर ही न रही उसके जाने की।

राजनितिक दलों की राजनितिक आस्था

नमस्ते साथियों ,

देश की सियासत के पांच नमूने -

१. भारतीय मिडिया

२. धार्मिक आस्थाएं

३. लोकलुभावन वादे

४. योजनाओं की प्रचार सामग्रियां

५. सोशल मिडिया

यानि मूलतः सत्ता का बुनियादी लक्ष्य वर्तमान में आमजन का जीवन सरलता तथा विकाशशील करना होता है , किन्तु वर्तमान में ही , इसकी परिभाषा बदल चुकी है। यानि आज के विकास का नाम आस्थाएं , भड़काऊं उद्दाम भाषा में बदल चूका है। है कोई सत्ता और सत्ता के सहयोगी प्रतिनिधि जिनके वादों और बयानों पर रोक लगाएं ?

यह नियत का खेल है बाबू जो सही रस्ते पर होगा वह हर गलत पर वार करेगा , क्योकि उसका लक्ष्य कोई मकसद का साधना नहीं वरन अपने पीछे खड़े लोगों की मदद करना है।


Tuesday 19 June 2018

सरफ़रोशी

कत्ल जिन ख्वाहिशों को मैंने कुर्बान तेरे लिया किया है
रब ने बंदगी का मगर इनाम तुझे दिया है !

सर पे लाल लहू चढ़कर सरफ़रोशी मांगता है
बाजुए कलंदर वीरगति को ठानता है।

है बचा नहीं कुछ और तुझपर लुटाने को
याद है मुझे कहीं दिन नहीं तेरे लालों पास था खाने को।

हुक्मरान जितने ताबीज चाहे बस में करने को बना लें
न टूटा है हौसला न टूटेगा , जा जितना इज्जत उछालना है उछाल लो। 

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

  नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...