कत्ल जिन ख्वाहिशों को मैंने कुर्बान तेरे लिया किया है
रब ने बंदगी का मगर इनाम तुझे दिया है !
सर पे लाल लहू चढ़कर सरफ़रोशी मांगता है
बाजुए कलंदर वीरगति को ठानता है।
है बचा नहीं कुछ और तुझपर लुटाने को
याद है मुझे कहीं दिन नहीं तेरे लालों पास था खाने को।
हुक्मरान जितने ताबीज चाहे बस में करने को बना लें
न टूटा है हौसला न टूटेगा , जा जितना इज्जत उछालना है उछाल लो।
रब ने बंदगी का मगर इनाम तुझे दिया है !
सर पे लाल लहू चढ़कर सरफ़रोशी मांगता है
बाजुए कलंदर वीरगति को ठानता है।
है बचा नहीं कुछ और तुझपर लुटाने को
याद है मुझे कहीं दिन नहीं तेरे लालों पास था खाने को।
हुक्मरान जितने ताबीज चाहे बस में करने को बना लें
न टूटा है हौसला न टूटेगा , जा जितना इज्जत उछालना है उछाल लो।
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