Saturday 11 September 2021

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

 नमस्कार ,


लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति को समझाने की कोशिश करूँगा ।


" राजनीति " यह घोर विवादित शब्द , जिसमे उपजे विवाद और इसी में हल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारत की संवैधानिक व्यवस्था को दर्शाता है ।


हम भारत के बड़े राजनेताओं की जीवनियों को पढ़कर बढ़े हुए है , हमने उनके द्वारा भारत के लिए किये गए विकास कार्यो और देश के लिए उन्हें अपनी जान न्यौछावर करने के साहसिक गुणों को भी देखा - सुना है ।


यही राजनीत ने हमे आजादी के गौरव शाली क्षण का अनुभव करवाया तो यही राजनीत के वैदेशिक नीतियों के कारण हमने विश्व की हर गम्भीर समस्या का हल भी निकालने में सहायता की ।


यह तो हमारा गौरवशाली राजनैतिक सफर था , परन्तु बदलते हुए राजनीत के गृह परिवेश पूरी तरह से अलग हो चुके है, राजनीत केवल अपने लाभ का साधन महज बन गया है ।


यदि कतिपय शब्दों में वर्तमान भारतीय राजनीति का चरित्र स्वरूप देखें तो यह नकारात्मक शक्तिशाली बनकर उभरा है , राष्ट्र के किसी भी मामले में इसका हस्तक्षेप किसी दूसरी संस्थाओं से कहीं ज्यादा अधिक है ।


मैने कहीं मामलों में इसके चरित्र की भयावहता को अहसास किया है और देखा है की देश के हर मामले में यह जबरदस्त दखल के साथ अदालती निर्णयों को भी गम्भीरता के साथ प्रभावित करती है ।


यदि मै राजनीत की बढ़ती नकारात्मक शक्ति को यह कहूँ की वर्तमान भारतीय राजनीत भारत के कानून से बढ़कर है तो यह अतिशयोक्ति नही होगी , जिसके जीवन्त उदाहरण और दलीलें इसके कानून से बढ़कर होने की गवाही देते है ।


अभी वर्तमान के 2 - 3 दिन पहले ही देश के एक बड़े कारोबारी घराने के मालिक का कर्ज 94% कम करके केवल 6%सेटलमेंट के निबटान पर तय किया गया , यह वह लोग है जिनका राजनीत में प्रत्यक्ष रूप से कोई हस्तक्षेप नही है किंतु यही लोग पर्दे के पीछे से भारतीय राजनीत की सेहत को बदलते है और उसे अपने अनुकूल करते है । विदित हो की एक कॉर्पोरेट घराने के मालिक का 12429 करोड़ का कर्ज सरकार द्वारा 800 करोड़ में तब्दील कर दिया जाता है ।


यदि यही दलील लेकर कोई गरीब , बेरोजगार किसी अदालत में जाता है और कहता है की देश के अमीर का हजारों करोड़ रुपया माफ़ कर दिया जाता है तो हमारा कर्ज क्यों माफ़ नही किया जाता है ? तो अदालत की दलील होती है की " प्रेक्टिकल " होइये अर्थात अदालत की दलीलों का अर्थ है की आप गरीब बेरोजगार को कॉरपोरेट की तरह न्याय पाने का अधिकार नही वे कानून की दृष्टि में समान नही बल्कि कॉरपोरेट अपराधी होने के बावजूद तेज और मन मुताबिक न्याय पाने के अधिकारी है ।


तो क्यों न कहा जाए की राजनीत की दशा दिशा तय करने वाले औधौगिक घराने के शक्तिशाली लोग अप्रत्यक्ष राजनीत से भी कानून को गुमराह करके और कानून को अपने हिसाब से अनुकूल बना देते है जिससे की उनके खिलाफ कोई निर्णय न दे सके । यह कटु सच है भारत में राजनीति से बढ़कर कोर्ट कचहरी भी नही । यदि कानून बड़ा ही होता तो हर मामले में इनकी जीत नही होती । क्योकि इन बड़े लोगों की दोस्ती सरकार के शीर्ष से होती है जिन्हें यह लोग पर्दे के पीछे से चलाते है।



नोट : लेखक स्वतंत्र लेखक और कवि है ।


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