यह कीर्ति नही त्याग है!
जो धाक नही आग निगलता है,
जीत नही हार में जलता है
यह कीर्ति नही त्याग है!
विश्व के जाली अमर संहार में
लिए पताका कूदे मैदानों सवार में
रंगो में बहुरंग उगलता है
यह कीर्ति नही त्याग है!
यों मौत से ह्रदय भयहीन
देखो तो सिंह सा विराट प्रतिदिन
इतना ही नही यह काँटों में चलता है
यह कीर्ति नही त्याग है!
इस अंधरे विश्व में अवसर खूंटे बंधे
युवा भरके सपने आँखों में इतने ही थके
नया सवेरा नया जोश खून उबलता है