स्व जिव्हा से द्रुत
आह की निकल आई
कथन ! थर्राती सांसे
आँखों तक आकर भर आई
प्रयास पूर्ण किये समय पर
हथेली में वारें प्रतीत होती
सूखी दृष्टि की चीख
मंद होकर आशाएं छोटी
तिरहुत के तालाबों में
जो विजन पढ़ा था मैने
अपने जीवन की रातों को
खाली खड़े भंडारों में मकड़ जाल पाया मैने
इलाहाबाद के कुंड
वो टूटी मूर्तियां
एक शतक की मर्दित, बड़े बड़े प्रशाल
शैल पड़े फूटे , चढ़ी चीटियाँ
देश के भविष्य,युवाओ को
पथ बनाकर कैसे मै दे जाऊं
गली मुहल्लों में मुक्त फिरते
नवज्वाला के सुख सागर में कैसे नहलाऊँ?
अखबार के पटल पर
लूट गया घर का घर
जड़ चेतन मेरी हिल गई
हिल गई पलके चीर
आकाश के नीलेपन में
जब हर्ष उल्लास देखा था
ये वही धरा है रक्त जिसने
अपने लालों का फेका था
भरी पड़ी इस दुनिया को
रे कवि क्या गान मै ऐसा गाऊँ
निर्दोष निशि में ठानकर
भोर तक हाय लूट गया चिल्लाऊँ
अपनों के मेले में रिक्त हुई
आशाएं !
छल कपट के युग में
मल्लित तन , गन्दी मानसिकताएं
खूबसूरत शब्द
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