नयन को चिंता उठी
ह्रदय पुंज खुल गए
किसलय के उरों पर
उषा के सवेरे सिल गए
नीलगायें चर लगाती मेढ़ों पर
हरी दूब फेल गई
तुषार की बूंदे दमकती
वाष्पित होना भूल गई
अल्हड़ शाम की शेष निधि
गर्मी के मौसम में बाकि है
हरे हरे पेड़ों की शाखें
अंगड़ाई लेकर दिखलाती झांकी है
क्षीर पलाश के पत्तों में
व्रतों से इस तरह बहने लगी
बाल मेरे यहां दूध पीते
दुग्ध की नहरें अधर पर रहने लगी
पुरवैया बालक दिनकर को
अंजुल दिखाकर खेतों में जा पहुँची
निशि तेज आगे बढ़कर
डूबकी लगाकर शहर पहुँची साँची
#सुप्रभात् #जयश्रीकृष्ण
वाह.. शानदार
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