Saturday 25 February 2017

गीत सुना जाता हूँ

गीत सुना जाता हूँ

टूटे हुए स्वर

सूखे लुटे अधर


मुफ़्त के ही कूचों में

उलझे है सरासर


खुली वात से स्वयं टकरा

जाता हूँ

गीत सुना जाता हूँ


हल्की मन्द दर्द की लहरो में

मुख को अधेंरे में चमका जाता हूँ


गीत सुना जाता हूँ


रंग बिना सब कुछ सूना है

एक बार रंग के जग में कोई प्रवेश कर ले

या उसे रंग की विशेषता के बारे में ज्ञात हो जाए

तो उसे संसार की हर वस्तु मनमोहक , मनोहारी लगने

लगेगी ।

छोटा हो या बड़ा सभी में केवल उसे सौंदर्य ही नजर

आएगा ।

सामान्य व्यक्ति भी कवि , लेखक , कलाकार बन

जाएगा ।

रंग भाव का द्योतक बनकर लोगो को रंग में डुबो रहे है

इन रंगो में इंसान इसमें डूबता ही चला जाता है ।

Monday 13 February 2017

दोपहर की धुप खिली है

दोपहर की धुप खिली है

निवास के भीतर भाप चली है

दोपहर की धुप खिली है

लम्बी गलियोँ तक दृष्टि देखे

कोई गलती से भी न दिखे

दोपहर की धुप खिली है

Saturday 11 February 2017

अधर पर साँझ ढली है

अधर पर साँझ ढली है



मीठे शकरकन्द सी आवाज चली है

कण्ठ से मन्द जैसे फुहार चली है




अधर पर साँझ ढली है




जब नयन मुख को देख न पाती

खुलते ही बाजार निकल जाती

चलते बातो से घात कर जाती

बैठ एक जगह तुझसे कहती

लालिमा बिखरी उड़ती चली है




अधर पर साँझ ढली है


Monday 6 February 2017

नीर की अपनी गाथा है

नीर की अपनी गाथा है

तलछट सी उसकी कथा है


रंगो की दुनिया में घुलती है

वादियो के सीने में प्रथा है

नीर की अपनी गाथा है


नियम जग का करता अपमान है

भूल है सबकी कहे  ये नादान है

चरखे मौसम का भी वरदान है

भटका मानव गीत तेरा गाता है

नीर की अपनी गाथा है ।

Saturday 4 February 2017

झलक की भी बेचैनी है

झलक की भी बेचेनी है

साँसो की हल्की करनी है



वह एक जगह थी कामायनी

दिल से लगी थी सुंदर नयनी


मासूम सी अदाओ में सिमटी

मखमल के बदन में लिपटी


कपाल पर , मेरे दिल के काल

झुरमुट मुस्कान के तेरे आमाल



बालो से लहराऐ छाया फैलाए

पलके झपका दिल को तरसाए


छलक जाए आंसू , तड़प जाए गेसू

सजदे में गिरे सर झुक जाए बाजू









Friday 3 February 2017

मेरे उधान में फूल खिले है

मेरे उधान में फूल खिले है


धरती की रंगत से गुण ऐसे मिले है


लहलहाते नम सुंदर अमूल मिले है



मेरे उधान में फूल खिले है



रातभर किस्सों  में चर्चा करते


शुभ सवेर तुझको मिलते


कतार बनाकर जल से मिलते


झुण्ड बनाकर आपस में खेलते


मेरे उधान में फूल खिले है

पतंग से नभ् में उड़ते है सपने

पतंग से नभ् में उड़ते है सपने



स्वप्न की दुनिया जीवन का आगाज है



अंतर ह्रदय की मधुर आवाज है



काल के जुल्म से दूर है आज अपने




फिर भी पतंग से नभ् में उड़ते है सपने



कुंभ से सजे इर्दगिर्द सुंदर मेले 



बाल्यकाल की रौनक में दिखते है अपने



पतंग से नभ् में उड़ते है सपने




विशेष नही मगर दाम मिले है

विशेष नही मगर दाम मिले है


महत्व नही मगर काज के दीये जले है

बिन संघर्ष भी कही से घर आबाद मिले है


विशेष नही मगर दाम मिले है


सुबह साँझ नयन बन्द हाथ जोड़े खड़े है

आशा से निराशा के खेमे बर्बाद मिले है

विशेष नही मगर दाम मिले है

हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए

हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए

बिगड़े तन के अनियंत्रित क्षण हुए


आश्चर्य की दृष्टि बाहर निकले

आदर्श की किरण में जैसे घुले हुए


पठारों की धुल सा सजा आँचल उड़ा

नयन में चमके अंजन जैसे झरने बहे हुए


हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

  नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...