टूटे हुए स्वर
सूखे लुटे अधर
मुफ़्त के ही कूचों में
उलझे है सरासर
खुली वात से स्वयं टकरा
जाता हूँ
गीत सुना जाता हूँ
हल्की मन्द दर्द की लहरो में
मुख को अधेंरे में चमका जाता हूँ
गीत सुना जाता हूँ
एक बार रंग के जग में कोई प्रवेश कर ले
या उसे रंग की विशेषता के बारे में ज्ञात हो जाए
तो उसे संसार की हर वस्तु मनमोहक , मनोहारी लगने
लगेगी ।
छोटा हो या बड़ा सभी में केवल उसे सौंदर्य ही नजर
आएगा ।
सामान्य व्यक्ति भी कवि , लेखक , कलाकार बन
जाएगा ।
रंग भाव का द्योतक बनकर लोगो को रंग में डुबो रहे है
इन रंगो में इंसान इसमें डूबता ही चला जाता है ।
दोपहर की धुप खिली है
निवास के भीतर भाप चली है
दोपहर की धुप खिली है
लम्बी गलियोँ तक दृष्टि देखे
कोई गलती से भी न दिखे
दोपहर की धुप खिली है
विशेष नही मगर दाम मिले है
महत्व नही मगर काज के दीये जले है
बिन संघर्ष भी कही से घर आबाद मिले है
विशेष नही मगर दाम मिले है
सुबह साँझ नयन बन्द हाथ जोड़े खड़े है
आशा से निराशा के खेमे बर्बाद मिले है
विशेष नही मगर दाम मिले है
हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए
बिगड़े तन के अनियंत्रित क्षण हुए
आश्चर्य की दृष्टि बाहर निकले
आदर्श की किरण में जैसे घुले हुए
पठारों की धुल सा सजा आँचल उड़ा
नयन में चमके अंजन जैसे झरने बहे हुए
हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए
नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...