दोपहर की धुप खिली है
निवास के भीतर भाप चली है
दोपहर की धुप खिली है
लम्बी गलियोँ तक दृष्टि देखे
कोई गलती से भी न दिखे
दोपहर की धुप खिली है
नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...
बहुत खूब 👍
ReplyDeleteकभी वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग को भी ज़रूर देखिएगा !
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अवश्य मित्र , आप प्रतिभाशाली है ।
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