अधर पर साँझ ढली है
मीठे शकरकन्द सी आवाज चली है
कण्ठ से मन्द जैसे फुहार चली है
अधर पर साँझ ढली है
जब नयन मुख को देख न पाती
खुलते ही बाजार निकल जाती
चलते बातो से घात कर जाती
बैठ एक जगह तुझसे कहती
लालिमा बिखरी उड़ती चली है
अधर पर साँझ ढली है
मीठे शकरकन्द सी आवाज चली है
कण्ठ से मन्द जैसे फुहार चली है
अधर पर साँझ ढली है
जब नयन मुख को देख न पाती
खुलते ही बाजार निकल जाती
चलते बातो से घात कर जाती
बैठ एक जगह तुझसे कहती
लालिमा बिखरी उड़ती चली है
अधर पर साँझ ढली है
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