हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए
बिगड़े तन के अनियंत्रित क्षण हुए
आश्चर्य की दृष्टि बाहर निकले
आदर्श की किरण में जैसे घुले हुए
पठारों की धुल सा सजा आँचल उड़ा
नयन में चमके अंजन जैसे झरने बहे हुए
हरे हरे मुख के सवेरे दर्शन हुए
नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...
👌👌👌👌
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