विशेष नही मगर दाम मिले है
महत्व नही मगर काज के दीये जले है
बिन संघर्ष भी कही से घर आबाद मिले है
विशेष नही मगर दाम मिले है
सुबह साँझ नयन बन्द हाथ जोड़े खड़े है
आशा से निराशा के खेमे बर्बाद मिले है
विशेष नही मगर दाम मिले है
नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...
No comments:
Post a Comment