Friday 3 February 2017

पतंग से नभ् में उड़ते है सपने

पतंग से नभ् में उड़ते है सपने



स्वप्न की दुनिया जीवन का आगाज है



अंतर ह्रदय की मधुर आवाज है



काल के जुल्म से दूर है आज अपने




फिर भी पतंग से नभ् में उड़ते है सपने



कुंभ से सजे इर्दगिर्द सुंदर मेले 



बाल्यकाल की रौनक में दिखते है अपने



पतंग से नभ् में उड़ते है सपने




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