वो नजरें इनायत के राज खुल गए
मुहब्बत की जालियों में
खुद सामने आकर लिपटे बाँहों में
हमने लाजवंती के गीत गाए गलियों में।
सुबह सवेरे यार खुद
ही आकर मचल गया
लू लगे बदन को रूह से
अपनी प्यारी मसल गया।
ताउम्र एहसान से उसके
रहेंगे सराबोर हम
गजल किनारे नदियां के
लिखते गाते रहेंगे उसके हम।
आग और दरिया में फासला
सिर्फ कुदरत का है अजीजों
वरना मुहब्बत और नफरत
का रिश्ता एक हो तो खरीद लो।
मुसलसल रहा जाहिर रोज
मगर , मुहब्बत के ताने बाने से
खुदगर्ज दिलबर ने बिताए पल
खबर ही न रही उसके जाने की।
शानदार कविता 👌🌹
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