Wednesday 21 February 2018

जीवन दैत्य !

मैने जीवन नही माँगा था
क्योकि हिनों की लूटती अस्मत
देखकर ह्रदय चिंतित है
किसानो के नयनजल में
भयावह अकाल दिख रहा
आगामी भविष्य भयभीत है

विमल नगरियाँ मधुरस को
तरस गई ,अवगाहन की हुई आँखे
भूल गए छल पुरानें
भूली नजरें चेतन रोती रोती तन भीगे

इस शशोपंज में ह्रदय
अटक गया मनुजों का
नाश होगा दानव और
अवेध अभेद अक्रेत धनुषों का

माँ कल्याणी विरह वेदना में
मै अपने मासूमों के शवों पर नित्य निज तड़पता हूँ
अभी भेदा हुआ मटका
बर्तन सा झरपता हूँ

तरस गए भूखे एक विलास को
नींद नही , नही सुख है
पलास के कोमल पत्तों में
छिन गई आजादी अनिल
ने कराह लगा दी छत्तो में

ऊहापोह है रन्धित तन
कबतक मिथिला सा बना रहेगा
कील सी चुभम के समक्ष
कबतक तड़पता खड़ा रहेगा?

अवलम्बन मांग मांग
मृदा की भाँति दरक गया हूँ
फुट गई मानो आँखे
काल की भेंट पर लटक गया हूँ

जिव्हा के रूदन में नीरव
ठहर नही पा रही
स्वंग टूट चुके रगें चालबाजी
करती सांसो में अलगाव रही

तपोवन को निकल जाने
की तीव्र आकांक्षा घर करती है
मर्दित वातावरण में
अंतिम अंतिम हूँ ,कहती आहें भरती है

ऐ दिव्य शक्तियों के
पर्णकुटी की वाटिकाओं में रहने वाले
अलख अवलम्बन की मेरे प्यारे
निर्झरों के उपलों में लगा दे
मत्स्यों के कंठ को शीतलता
की नवी नवी वेणु विंदु गाकर दिखा दे

न कोई चरणमृत होगा यहाँ
न किसी जननी का दुग्ध लूटेगा
महादानव के तोरण से
पुनः कोई तीर छुटेगा

आज माँगता हूँ उन मर्दित किसलयों
के दान की अंतिम भिक्षा
झड़ गए दाने जिन निवारों के
कर दे कर दे उनकी अभिरक्षा

हाय यह द्रुत बड़ी कानों में
गूंज मचाकर चिढ़ाती है
बाल मेघों की भूख तड़प बिन भोजन के
रातें मेरे वतन की कट जाती है

अंजुल खुलकर बन्द हो गई
तीर ह्रदय , शरीर के पार हो गया
फना अस्तित्व , यात्रा विजन की
निर्थक म्रत्यु की कतार हो गया

1 comment:

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