हरी दूर्वा समझ गई
कुसुम उठ खडे होंगे
मंदी हर सू होगी
किन्तु मौसम ऋतुपति में
पुष्प नृप अंगड़ाई लेंगे।
लहराएंगे खिलखिलायेंगे
बाहें फैलाकर दृग मिचकर
क्रीड़ा !प्रेम की लाली से
सिकता में भी स्म्रति सींचकर
आज पुलिन खिलते
मन्द गीत गाएंगे
रंच रंक मरू में भी
रस के छत्ते फुट जायेंगे
पावस की बूंदे बिखरी हुई
किसलयी शाखों पर नाच रचाएंगी
विशिष्ट कलाबाजी अपनी
सृष्टि को दिखलाएगी।
#HappyValentineDay
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