शुभ्र वसन की दस्तक में
धवलश्री सुने मैने
कपाल की दाई ओर
शीश झुके मृदुल नेने
दानव बुद्धि बुझाकर
काले नीम काटते है
प्रभु मग में चलते जाते
दनुज शूल पाटते है
सीप शंख में जलधि
सिमटकर रह गया
अंजुल दानों की माफिक लल्ला के
बीच उमंग के तेरे थे
मीत लगाकर कह गया
शिव थाति , अमित
प्रेम का प्याला
नश्वर प्रेम के भाव में
डूब गया निराला
भले भजन में डीग हांकता
मनुहारी मन मेरा
सांवरे खिले अधर लेकर आया
तन ठन नर्तन आँगन उजेरा।
कविता के बहुत खूबसूरत शब्द
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