Monday 12 February 2018

" जगमग आनन "

देख पताका फेरा है
संगमरमर की थाली में
राकेसी रूप समान
छुपा आनन जाली में

भीतर के उजियारे
पुंज भेदकर बाहर निकल आये
मुकुल सतह पर
देखो ये शीतल छाए

अंधियारे में देखो
शिखा क्या खूब नृत्य करती है
मग में ठहरे रही से
क्या वह डरती है?

अर्ध मज्जा में ललन मन
रहता है
गहन रागिनी में कलकल
स्वन करके बहता है।

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