Thursday 15 February 2018

" पीड़ा "

जनमानस के प्रांगण में
भविष्य उजाड़ रहा है
हथ की भाँति पैरों से
मर्दित करके मजबूत
प्रत्यंचा सा तान रहा है

भय ने भीतर अग्रिम म्रत्यु
की अफवाह फैलाई
अंदेशा इतना भयावह
अनिल की आहट भी लगी गुस्साई

हिसाब बराबर अपने
कर्मो का निकट रख लेना
डोर सांसों की टूटेगी
आज तपोवन में नेकी जप लेना

मनुज के निरादर से
चेतन की करना दूरी
निर्थक की आँचल में वरन्
लगा जायेगी दगा की फेरी

मनुज एक खिलौना है
आदिकाल से ऋषि कह गए
घृणा की सेज से हट जा
द्वार किलों के ढह गए

उन्माद से भला न होगा
जीवन प्रमाद की गढ़ जायेगा इतिहास
छोड़ हथकण्डे लालच के
छिन जायेगी संगत से विभव की प्रभास

1 comment:

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

  नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...