'वृद्ध जीवन '
अंजुल फैलाकर मेंनें याचना
मांग लिया
भयभीत हुए मन , आत्मा ने
अंत होना ठान लिया
विजय दिवस तब मनाऊंगा
जब राष्ट्र का एक एक बच्चा प्रफुल्लित होगा
मेरे विचार में , मेरी निद्रा भुखी होगी
किन्तु राष्ट्र पुरूष का जनमानस
मानवता की भावनाओ से द्रवित होगा।
जलाशय जब सूखे थे
मन मेरा तब विचलित था
उषा के भूखे रूप देखकर
मरू ह्रदय में , पिघला मीत था।
रम्भा उर्वशी मिलकर रूदन में
समय व्यतीत करते है
सिसकियाँ निर्धनों की सुनकर
निशि राकेश से लड़ते है।
परिणाम द्व्न्द गीत के क्या
गाऊ , चीखे निर्दोषों की सुनता हूँ
ऐ मीत आत्मा के भारत
पग पग स्वयं को अंतिम गिनता हूँ।
Waah
ReplyDelete