Friday 23 February 2018

सांसो की चीख

जीवन के सुकुमार पुष्प न जाने क्यों
गम्भीर सांसे लेते है?
धीट असफलता के कारण
कालों के संग घिरे रहते है

शुभ्र् वसन की भाँति चन्द्रमा
ने जो दिव्य पाहन पहने थे
सागरों में रोशनी फेंकते
जिनके पूरब में अवगाहन थे

पुरवैया घूम घूमकर गलियों
के चक्कर जब खूब लगाती थी
मै मेरा ह्रदय सैयां की पाँति
सी बन जाती थी

किरणे जगमग धूसर के
अलि में लिपट जाया करती थी
सिंचन धरा के स्थलों को
रागिनी की लपटों में मिलकर रह जाती थी

अब वह बात न रही क्योकि
मेरे उपवन सूख रहे है
रवि कलेजे के अहातों में
किरणों के बंद सन्दूक रहे है।

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