Saturday 24 February 2018

आओ मशाल जलाएं

चलों भीगे कुछ आंसुओ से
मन के दीप जलाएं
आओ शकरकन्द से ही
अपने राष्ट्र रंको की भूख मिटाये

मंदिर मय हुए आकाशतल
धरती के पल्लू भीगे है
आओ इन्ही में से खोजकर
अहाते कुछ निकाले सूखे है

पोर पोर में जख्म अंतर तक
शूल चुभे बेसलीके है
ढिलमिल नीरव विद्रुम विद्रूप
निर्जन घरों के सींकचे है

फूहड़ मन की अनामत मांग ली
जिन जिन विहड़ मन वालों ने
आओ किन्तु दूर्वा हरित बिछाकर
स्वागत मानवमात्र को करें चमकदार उजालों में।

1 comment:

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