चलों भीगे कुछ आंसुओ से
मन के दीप जलाएं
आओ शकरकन्द से ही
अपने राष्ट्र रंको की भूख मिटाये
मंदिर मय हुए आकाशतल
धरती के पल्लू भीगे है
आओ इन्ही में से खोजकर
अहाते कुछ निकाले सूखे है
पोर पोर में जख्म अंतर तक
शूल चुभे बेसलीके है
ढिलमिल नीरव विद्रुम विद्रूप
निर्जन घरों के सींकचे है
फूहड़ मन की अनामत मांग ली
जिन जिन विहड़ मन वालों ने
आओ किन्तु दूर्वा हरित बिछाकर
स्वागत मानवमात्र को करें चमकदार उजालों में।
वाह बहुत खूब👌
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