Saturday 24 February 2018

" गगन "

अंको में बंट गया गगन
मिथिला के पंजो में
हिमाद्रि और गंगा में
बच्चों की रंग बिरंगी मांझो में फंस गया गगन

अंको में बंट गया गगन

जलधि में उतरता है
शिशिरकाल में चढ़ता है
मंद मंद कदम बढ़ाते
विशिष्ट अतिथि बन गया गगन

अंको में बंट गया गगन

चिरी खिल उठती है
तेरे छा जाने से
कनेर मिलते है आपस में मधु
पावस की बूंदों के बरस जाने से
चढ़ते जवानी की सीढ़ी
गुलाब कुंद खड़े बड़े तुंग से चमन

अंको में बंट गया गगन

चंद्रमा केश फैलाकर
तुझसे मालिश को कहता है
देख रवि भी समीप तेरे ही रहता है
दीर्घग्मन तू लघु रण तू
धरती की निर्जनी में तू साथी रमन

अंको में बंट गया गगन

1 comment:

राजनीति से औधौगिक घराने की दोस्ती कानून पर भारी पड़ जाती है?

  नमस्कार , लेख को विस्तृत न करते हुए केवल सारांशिक वेल्यू में समेटते हुए मै भारतीय राजनीत के बदलते हुए परिवेश और उसकी बढ़ती नकारात्मक शक्ति ...