Wednesday 28 February 2018

नीलामय

करतली के ऊपर आकर
मेघ ने संदली सजाई है
बहारें साज करके
मृग रूप लेकर आई है

माघ के मौसम की आवाज
से ऋति नीरव में लीन
खड़े फाल्गुन की आस में
दुर्दिन हुए अब तल्लीन

चिड़िया , पिक मिलकर
साधू वादन का राग लगाए है
फूलवती के पंखो में
नव नव सांसे उभर आये है

कनेर के पौधे वसुधा के
शुक्रगुजार में खिल उठे
पावस के अतिरेक में
समर करनेे धीट छूटे

हरियाली के बावन सुख में
क्या कवि का मन अवगाह
रे तमन भेजने वाले ईश्वर
जग के निसर्ग की मुझे चिंता।

1 comment:

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