करतली के ऊपर आकर
मेघ ने संदली सजाई है
बहारें साज करके
मृग रूप लेकर आई है
माघ के मौसम की आवाज
से ऋति नीरव में लीन
खड़े फाल्गुन की आस में
दुर्दिन हुए अब तल्लीन
चिड़िया , पिक मिलकर
साधू वादन का राग लगाए है
फूलवती के पंखो में
नव नव सांसे उभर आये है
कनेर के पौधे वसुधा के
शुक्रगुजार में खिल उठे
पावस के अतिरेक में
समर करनेे धीट छूटे
हरियाली के बावन सुख में
क्या कवि का मन अवगाह
रे तमन भेजने वाले ईश्वर
जग के निसर्ग की मुझे चिंता।
शानदार कविता
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