पनघट के छल्ले में कोई
उजला पुंज सतह पर पसरेगा
निज जयंत के उदघोष लगाकर
राकेश रश्मि से झगड़ेगा
अपरान्ह के प्रारम्भ तक
संझा की फेरी के द्वार
उषा की नग्न बहारें
ताजगी के प्रशाल तार तार
अनल के क्रियाकलाप शीतल
लौ फ़िजा में लगाएंगे
मज्जा के ऊपरी , निजले भाग
शांत वातावरण पाएंगे
विशाल समूह में रंग , एक साथ
होलिका की ढेरी सजेगी
रत घरिणीयां साड़ी पल्लू
लेकर चौराहों के ओर बढ़ेगी।
शानदार कविता
ReplyDelete