शिथिलता के तंबू से बाहर
अब वीरों निकल आओ
कर्ज से ली सांसो का
सूद सहित प्रतिकार याद दिलाओ
हर मोर्चे पर विफल विनय
निर्दोषों के उठकर वृथ गए
व्याघ्र की भाँति पद निशान
अब शोणितों के लद गए
क्यों यह जीवन स्वत्व की
भेंट बलि मेध चढे हुए
इंगित कर उनके शोणित
विपन्नो के शीश रोये।
शर लम्बी जिनकी चमकी
शव निर्दोषो के गिरने लगे
अरे जरा याद दिलाओं इन्हें
यह मानव मनुज तुम्हारे ही सगे
थाती समेट कोने में बूढी
मैया ने सम्भाल रखे थे
अनभिज्ञ प्रलय सा बनकर
दनुज इनपर टूटे थे
मिथिला की भूमि रंगहीन
वीरों के जाने से हुई
मथुरा की मीठी मीठी
किसलय विरह में कृष्ण के रोइ
अंधत्व को छोड़ क्रोध त्याग
महिसासुर से जा भीड़
असुरों को प्रतिकार दे
फेर दे उनके मोड़।
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