Sunday 4 March 2018

विरह वेदना

शिथिलता के तंबू से बाहर
अब वीरों निकल आओ
कर्ज से ली सांसो का
सूद सहित प्रतिकार याद दिलाओ

              हर मोर्चे पर विफल विनय
              निर्दोषों के उठकर वृथ गए
              व्याघ्र की भाँति पद निशान
              अब शोणितों के लद गए

क्यों यह जीवन स्वत्व की
भेंट बलि मेध चढे हुए
इंगित कर उनके शोणित
विपन्नो के शीश रोये।

               शर लम्बी जिनकी चमकी
               शव निर्दोषो के गिरने लगे
               अरे जरा याद दिलाओं इन्हें
               यह मानव मनुज तुम्हारे ही सगे

थाती समेट कोने में बूढी
मैया ने सम्भाल रखे थे
अनभिज्ञ प्रलय सा बनकर
दनुज इनपर टूटे थे

               मिथिला की भूमि रंगहीन
               वीरों के जाने से हुई
               मथुरा की मीठी मीठी
               किसलय विरह में कृष्ण के रोइ

अंधत्व को छोड़ क्रोध त्याग
महिसासुर से जा भीड़
असुरों को प्रतिकार दे
फेर दे उनके मोड़।

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