अगस्त्य की वाणी सही थी
घोर कलयुग बुरा आएगा
निशाचर कोई सतत भू पर
विपुल विकटता बरसायेगा।
उजडी अऊसर वसु पर
छाती मनु है अपनी पीटेंगे
नेह की कमी का लाभ
असुर अनय के रूप में करेंगे।
जीवन की अदृश्य कहानी
क्या बतलाऊं राकेश तुझे
कश्ती की पतवार टूटी
सवार एक स्वर में जूझे।
किंचित मन में विरह
बाजुओं के सो जाने की
है कोई आशा किसी वीर
के रक्षा के लिए आने की!
अब है निराश नीरज का हिय
कूलों ने जबड़े अपने उछाले
इन भोर के जवानों को
उठाओं छावनियों पर लगे है ताले
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