मेरे विनम्र साथियों , आप सभी को मेरा समर्म नमस्कार,
मेरी बात आज आपसे " मेहनत की दीवार के पीछे " भारत " शीर्षक के रूप में होगी ।
किन्तु प्रथम में नमन बिंदु -
" हे ईश्वर ईश गीत
गा उपकार तेरा बताएं हम
मन्दिर - बाट चक्कर लगा
शीश समक्ष तेरे नवाएँ हम "
वैश्विक तकनीक के बीच भारत के योगदान के प्रयास उसे वैश्विकता में प्रतिस्पर्धा के बीच कायम रखने के प्रयास भर है ।
लेकिन इस बात को नजरअंदाज नही किया सकता , इन सबके बीच भारत की मुख पहचान संस्क्रति है ।
मै उस आजाद भारत की चर्चा कर रहा हूँ जिस भारत को आजादी , संघर्ष की अंतिम शक्ति की पंक्ति से मिला है । जो की शोणित तन के बलिदान समस्त वीरों के हर लहू ने दिलाया , यह हर एक भारत के नागरिक पर किय गया अविस्मर्णीय उपकार तथा विश्व के लिए सीखने समझने का विषय ।
इससे इतर संघर्ष , मेहनत का चरम प्रथम चक्र गाँव से शुरू हुआ , जिस भारत की पहचान अब भी गाँवो में शेष है । विदित हो , ग्रामीण जीवन अब भी ईश्वर के सबसे समीप है , उसके आलोक चौराहे , प्रकृति की संतानो में सबसे अभिसार है ।
लेकिन लालसा के इस बाजार राजनीत , मीडिया में अवसर है अभ्युदय पाने का , जहां हर कोई यह चाहता है उसे प्रसिद्धि के शिखर शीघ्र मिले । जिसके लिए उसे किसी से लड़ाना द्वेष फैलाना कोई पाप प्रतीत नही होता ।
यहां तक की वह संघर्ष से किये आजाद भारत के मर्म को भी पीछे रख , आगे बढ़े जा रहा है , मै बात उस उपकार की कर रहा हूँ जो वीरों के विमल बलिदान ने हमपर 70 बरस पहले किया ।
उस बलिदान का सिला लालसा की बत्ती जलाकर उसके संग छल करके दिया जा रहा है । क्योकि इसका बड़ा कारण चकाचौंध में होते दीवाने ह्रदय का होना भी।
गरीब का खून बहाकर जो लोग हंसते है उन्ही के संग आज राजनीती के पखवाड़े सज रहे है , क्रूर मानसिकता के साथ जश्न मनाएं जा रहे है ।
सत्ता हासिल करने के लिए भारत राष्ट्र के दो अमूल रत्न भाई हिन्दू भाई मुस्लिम को लड़ाने के प्रयास किये जा रहे है । यह सब उन बलिदानों का अपमान है जिनके कारण देश आजाद हुआ ।
मै एक बात यह भी कहूँगा , जब वीरों के बलिदान आज के राजनीत के लोगों के आगे कोई विशेषता नही रख रहा तो समझिये भगवान परम् पूज्य अप्रतिम पित महाप्रभु राम इन सत्ता वालों के आगे क्या मायने रखेंगे ? जरा इस बात को भी गहनता से सोचिये ।
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