Wednesday 21 March 2018

मिसाल नही

तेरी वफ़ा का हिसाब क्यों करना
जिंदगी के निज़ाम के रंग है भरना

जिन राहों पर कांटे मस्ती में मशगूल है
लड़कपन में पांवो को छुएं सी धूल है

इन हवाओं में कुछ तो नमी तुम्हारी शामिल है
देखी मैने हंसी के फव्वारों में जमी बर्फ की सील है

रातों के गहरे अँधेरे में गुम , भटक सा गया
तारों के बाजार में नन्हा तारा रास्ता भूल गया

पनघट को चली चुनरी लहराते उषा
किरणों के मेले में घुस गई जाकर पूरब दिशा

बिछी चादर फूलों की , खुशबु किधर रही घूम
माथे को प्यास लगी होंठो की चूम

सूरज पलटता नही क्या उसे हुआ अगर
भूल गया आना या धूल गई डगर

भीड़ लगी तुमसे दर्स मुबारक सुनने की शहर
सामने से बह निकलेगी मीठी सी नहर

परिदें सी रूह सफेद गुलिस्ताँ का नजारा
हमी के बीच चमक उठे चेहरा तुम्हारा

मंजिल की परवाह न अंजाम की फ़िकर
लब पर हर मुश्किल में नाम प्यारा जिकर

मौजूद हो किले की दीवारें टिकी हुई
इन्तेजार में मानो बारिश की बूंदी भी भीगे हुई

कला बाजीगरी का नमूना कहाँ से आया " शहादत
इस दौर में कोई मिसाल न होगी न हुई।

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