Tuesday 6 March 2018

निसर्ग के स्निग्ध

चाँद किरणों के रूप में
भुज फैलाकर आवाज निकाले
क्रुद्ध हुए रवि के हुर
आलोक करके शीतल मशाले

गगन के पुंज में मेले आज
किन घटाओ ने लगाए है
धरती के पाहुना सब मिलकर
पुष्पक पर सवार हो आए है

कलिंदी बाहों में मलय की
छायाँ लेकर स्वप्न देखती रही
अस्ताचल में धीरे धीरे
राकेश को फेंकती रही

पूरब में निसर्ग आनन्दी
लालिमा के पहरे सजाती है
संध्या के कूल पहर में
धीरे धीरे छुप जाती है

काजल ओढ़े पनघट में
निशा वधु रूप लिए बैठी है
गोपियाँ वृंदावन में मानो
विरह मुरारी से ऐंठी है

कपाल पर सवेरा उगेगा या
मशाल जलाकर प्रत्यक्ष अडिग
मठमेले पाहन अनिल पहने
द्रुम रजत कानो में पावक के लगाएगें गहने बनकर रसिक

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