बड़े गहरे जख्म है
नवयुवाओ को देखकर
कील सी चुभन के बीच
तड़पते गरीब रेतपर
कठोरता की रस्म अदा
कौन न सिवा करेगा
सूने से इलाक़ों को
रौनक से कौन भरेगा
पूरा का पूरा जग मांग
ईश्वर से रहा याचना
इन मासूमो की मासूमियत
को तुम न बाँटना
कितने दर्द सहकर
बसे बसाए उजड़ गए
खुशहाली के हेतु अब
बंजर से शहर रह गए
सिसककर धड़कने फलाँगे
है अपनी जगह लगाती
चूर चूर बदन मानो
खाने को दौड़ लगाती
कोई बख्श दो देश
हिन्दोस्तां को मेरे
इसने कदम कदम पर
खाये है दाग गहरे
न चाहिए धन न चाहिए
यश ! मुझे केवल रस
भीगे रहें ख़ुशी में सारे
तर रहे चेहरे महकते ख़स
दीये जल उठे जो बुझाए
खून कशी के लिए थे
हकीकत में मारे नही
वो उनकी शहादत के लिये थे
👌👌
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