Thursday 8 March 2018

कम है मगर काफी है

है हल्ला जिंदगी में मगर
हां बाकी जरूर चालाकी है
गुस्ताखी माफ़ करिये मेरी
हां इश्क के प्याले का तू ही साक़ी है

गमले में नमी फूलो की
जेवरात से बढ़कर
गुस्ल पाकी के लिए
ईमान मुकम्मल नीयत पर चढ़कर

महके गली मुहल्ले आँगन
एक बड़ी गुजर से तुम्हारी
आगाज अंजाम का सिलसिला
कामयाब जिंदगी हमारी

गले में गुलजार , आँखों में
बरसात बहुत तारी है
गुस्से को पी जाए ताकि
हमसफ़र जागे यही तुम्हारी गमगुसारी है

कलियों में जवानी उमड़ती
रास्तों को खबर मिल जाती है
पौं सुबह की फटती
आफताब सी चमक जाती है

जुल्फों में उलझकर क्या
खुद को क्या उलझाना है
बेफिक्र अंदाजो का
दिल तो मेरा दीवाना है

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