जो सख्ती से उभरकर
दाधीच सी निखर जाये
अयन अयन में फिर
निर्झर ,ख़ुशी से बह आये
कठिनाई के हाट में
संघर्ष है सेनापति
अड़िगता की छावनी
में टिके रह , ऐ नृपति
जम्हाई , रागिनी में
नींद की शांति को है दर्शाये
पत्ते पत्ते मानो मंदार के
हिलते हिलते मुस्काये।
डीग मारता दिल अनिल में
टिम टिम तारों सा है झूलता
गगन को करवट के इशारे से
बताता है मृदुलता।
हाथ में संयम का त्रिशूल
नाप नाप , विपद मिटाये
हर्ष पुलक के राग
जीवन में है दिखलाये।
चूम रही धरा , कुंतल
व्योम पुरूष , वीर के
शताब्दियाँ गुनगुनाये
इतिहास , शब्द शीर के।
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